रेबीज रोग की रोकथाम एवं उपचार

रेबीज रोग की रोकथाम  एवं उपचार
रेबीज रोग की रोकथाम  एवं उपचार

रेबीज एक घातक बीमारी है, जो कि मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है तथा प्रतिवर्ष होने वाली हजारों मौतों का कारण भी बनती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, विश्व के 150 देशों में प्रति वर्ष लगभग 55,000 लोग इस बीमारी की वजह से मारे जाते है, यानि प्रत्येक 10 मिनट में एक व्यक्ति की मौत होती है। भारत के संदर्भ में बात करे तो यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 18000 से 20000 लोगों की मौत हो जाती है अर्थात प्रत्येक आधे घंटे में एक व्यक्ति की मृत्यु, जिनमें मृत्यु का कारण रेबीज को पाया गया हैं। रेबीज बीमारी होने की सम्भावना बच्चों में ज्यादा होती है। एक अनुमान के मुताबिक पंद्रह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चों में रेबीज होने की सम्भावना ज्यादा होती है तथा मृत्यु के मामले में प्रत्येक दस में चार बच्चों की मौत रेबीज के कारण होती हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको रेबीज के प्रसार को नियंत्रित करने, रोकथाम और जागरूकता फैलाने के बारे में बता रहे है ताकि रेबीज के खिलाफ़ इस महायुद्ध का सकारात्मक परिणाम आ सके तथा रेबीज का खात्मा किया जा सके।

रेबीज क्या है?                                  

रेबीज एक जूनोटिक बीमारी है जो जानवर से मानव में स्थानांतरित होती है, जिसको रेबीज वायरस के नाम से जाना जाता है। रेबीज लायसावायरस के कारण होने वाला वायरल रोग है। यह वायरस घाव व खरोंच या संक्रमित जानवर की लार के सीधे संपर्क में आने से फैलता है, जो मानव त्वचा या मांसपेशियों के संपर्क में आने के बाद रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क की ओर प्रसारित हो जाता हैं। जिसके कारण केन्द्रीय तंत्रिका प्रभावित होता है। संक्रमित मनुष्य के मस्तिष्क में पहुँचने के बाद इस वायरस के लक्षण और संकेत दिखाई देने लगते हैं।  रेबीज के दो प्रकार होते है पहला फ़ुरिऔस (क्लासिकल या एन्सफलिटिक), 80 प्रतिशत मामलों में मनुष्य में फ़ुरिऔस रेबीज पाया जाता है। फ्रेंटिक रेबीज में रोगी अजीबोगरीब हरकते करने लग जाता है, जैसे- पानी व हवा को देखकर डरने लग जाता है, अजीब आवाज निकालने लग जाता है। दूसरा है पैरालायटिक- इस रेबीज में रोगी को लकवा की समस्या हो जाती है।

रेबीज रोग के कारक क्या है:-

रेबीज रोग के जिम्मेदार कारक स्तनधारी जीव होते है, जो पालतू और जंगली दोनों हो सकते है। पालतू जानवरों में प्रमुख है कुत्ते, बिल्ली, पालतू सूअर, खरगोस और मवेशी। जंगली जानवरों में मुख्यत: चमगादड़, लोमड़ी, नेवला, गिनी सूअर, और अन्य मांसाहारी जानवर

 

रेबीज रोग के लक्षण:-

अगर मनुष्य किसी भी जानवर के काटने के बाद या अन्य किसी माध्यम से रेबीज वायरस से संक्रमित होता है तो यह वायरस शरीर के माध्यम से मस्तिष्क में प्रवेश करता है तो इस दौरान मानव शरीर में प्रवेश करने और संकेत दिखने वाली अवधि को इन्क्यूबेशन अवधि कहते है। यह अवधि सप्ताह से लेकर महीने तक हो सकती है। यह इन्क्यूबेशन अवधि जानवर द्वारा काटे गये स्थान पर निर्भर करता है कि उसने किस स्थान पर काटा है, कुछ जगह जैसे हथेली, पैर के तलवे और सिर पर काटने पर

रेबीज से संक्रमित व्यक्ति को कई प्रकार के लक्षण हो सकते हैं, जो निम्न है  :

  • रेबीज रोग का पहला लक्षण होता है, रोगी को जिस प्रकार फ्लू में कमजोरी महसूस होती है उसी प्रकार की कमजोरी महसूस होने लगती है
  • तेज बुख़ारहोना । 
  • सिरदर्द होना। 
  • घाव वाले स्थान पर खुजली होना
  • हाइड्रफोबिया (पानी से भय होना)।
  • बौद्धिक क्षमता का नष्ट होना।
  • व्यवहार में परिवर्तन।
  • उत्तेजित और व्याकुल होना।
  • प्रकाश और शोर को देखकर घबरा जाना।
  • निंद्रा।
  • शरीर के किसी भी अंग में लकवा मार जाना।

रेबीज का उपचार:-

रेबीज के उपचार में किसी भी प्रकार की कोई दवा काम में नहीं आती है। अगर किसी भी जानवर के काट लेने पर काटे गए स्थान को तुरंत पानी और साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए। धोने के बाद काटे गए स्थान पर पोवोडीन आयोडिन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य जानवरों की लार में पाए जाने वाले कीटाणु लायसावायरस की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मारक क्षमता काफी हद तक कम की जा सकती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है। काटे गये स्थान पर किसी भी प्रकार का लेप (मिर्ची पाउडर या अन्य कोई पदार्थ) नहीं करना और ना ही घाव वाले स्थान पर टाँके लगवाने है। घाव वाले स्थान को खुला छोड़ देना है।

यद्धपि रेबीज घातक रोग है परन्तु इस बीमारी को रोकने में रेबीज का टीका कारगर साबित होता हैं। इसलिए जानवर के काटे जाने पर चिकित्सक से एंटी रेबीज टीके अवश्य लगवाये। एंटी रेबीज टीके इस प्रकार से लगाये जाते है-

  • पहला इंजेक्शन काटने के तुरंत बाद
  • दूसरा इंजेक्शन काटने के तीसरे दिन
  • तीसरा इंजेक्शन सातवें दिन
  • चौथा इंजेक्शन चौदहवें से 28 वें दिन के बीच

 

इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जो रेबीज को रोकने में कारगर साबित हो सकती है-

  • अपने पालतू जानवरों का समय पर टीकाकरण करवायें
  • आवारा जानवरों के सम्पर्क में आने से बचाना चाहिए।
  • कुछ लोग कुत्ते के काटने के पश्चात 10 दिन तक का इंतजार करते है, वे इंतजार नहीं करे और तुरंत एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाये
  • रेबीज रोगियों के सीधे सम्पर्क में आने वाले लोग एंटी रेबीज वैक्सीन अवश्य लगवायें।
  • पालतू कुत्ता, बिल्ली या अन्य जानवरों पर लगातार निगरानी बनाये रखें, कहीं उनके व्यवहार में परिवर्तन तो नहीं हो रहा है।
  • कुत्ता, बिल्ली या मांसाहारी जानवर पकड़ने वाले लोग एंटी रेबीज वैक्सीन अवश्य लगवायें।
  • आपके आस-पास के पालतू जानवरों टीकाकरण नहीं हुआ है, उनसे अपने पालतू जानवर दूर रखें।
  • अगर आपको रास्ते में घायल जानवर मिल जाये तो उसे छुए नहीं, बल्कि उसकी देखभाल के लिए लोकल अथॉरिटी को सूचना देवें।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले जहाँ रेबीज से संक्रमित होने का ख़तरा अधिक हो उन्हें एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाना चाहिए
  • रेबीज के बारें में विशेष रूप से बच्चों के बीच जागरूकता प्रसारित की जानी चाहिए।
  • जानवर के काटने पर, एंटी-रेबीज वैक्सीन के लिए तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें।
  • गर्भवती स्त्री हो या स्तनपान कराने वाली महिला को अगर कुत्ता काट लेता है तो उसे भी एंटी रेबीज का वैक्सीन लगवाना है।

कुत्ते की बाईट से बचने के लिए आपको कई प्रकार की बातों का ध्यान रखना है:-

  • कुत्ते के साथ अनावश्यक रूप से छेड़छाड़ ना करें
  • पागल या आक्रोशित कुत्ता यदि रास्ते में मिल जाये और वह आप पर आक्रमण करता है तो ऐसी स्थिति में आप अपने शरीर के नाजुक अंगो का (आँख, चेहरा) बचाव करें।
  • कुत्ते को भड़काने की कौशिश बिल्कुल ना करें।
  • अगर कुत्ता नींद में सो रहा है तो उसके साथ छेड़खानी ना करें।

 

रेबीज रोग की प्राण घातक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हमें समय पर टीकाकरण करवाना है और साथ में पालतू जानवरों का भी टीकाकरण करवाना है, अगर वे किसी भी परिस्थिति में काट भी ले तो रेबीज के खतरे की सम्भावना कम हो जाती है। तो आइए रेबीज के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में अपनी भागीदारी दर्ज करें और अतिसंवेदनशील रोग के उन्मूलन में अपना योगदान दे।