क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक और कैसे प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है?

क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक और कैसे प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है?

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार हैं जिनमें प्लास्टिक एक बहुत बड़ा कारण है। दिन की शुरूआत से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक को हमारी दैनिक दिनचर्या किसी न किसी रूप से प्लास्टिक पर निर्भर रहती है।

सुबह उठ कर ब्रश करना या खाने का टिफिन, पानी की बोतल हर जगह, हर समय हम प्लास्टिक के उत्पादों पर निर्भर रहते है। समाचार पत्रों में हम अक्सर पढ़ते है प्लास्टिक के कचरे को पशु खा जाते है जिसकी वजह से उनकी मौत हो जाती है। अब तो इस समस्या से महासागर और नदियां भी अछूते नहीं रहे है। महासागरों में बड़ी मात्रा में कचरे का निस्तारण किया जा रहा है, जो समुद्री जीव-जन्तुओं के लिए काफी प्रतिकूल साबित हो रहे है। पिछले दिनों समुद्री तट पर बहकर आई एक मृत मछली ने पर्यावरण के जानकारों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया और जांच से पता चला कि मछली की मौत उसके पेट और आंत में जमे प्लास्टिक के कचरे की वजह से हुई है, इस प्रकार जीव-जन्तुओं के साथ हो रही घटनाओं ने हमें सोचने को मजबूर कर दिया है क्या हमारी पृथ्वी वाकई प्लास्टिक के कचरे का ढेर बन गई है। पहाडों से लेकर महासागर तक ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ प्लास्टिक की मौजूदगी न हो, अगर इसी प्रकार ऐसे ही यह सब चलता रहेगा तो आने वाले समय में प्रकृति का सौन्दर्य शायद ही देखने को मिले और पृथ्वी कचरे का ढेर बन जायेगी पहाडों से लेकर महासागर तक ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ प्लास्टिक की मौजूदगी न हो।  इस प्रकार जाने-अनजाने में हम प्रक्रति को कितना नुकसान पहुंचा देते है। तो आइए इस लेख के माध्यम से हम यह अध्ययन करते है प्लास्टिक से जुड़े उत्पाद प्रकृति और पर्यावरण को किस प्रकार से खतरा पहुंचाते है।

प्लास्टिक क्या है:- प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो कि हजारों सालों तक ज्यों का त्यों पड़ा रहता है अन्य पदार्थों की तरह विघटित नहीं होता है। प्लास्टिक का विशेष गुण है कि वह जल और हवा के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता और साथ ही भार में हल्का, मज़बूत, टिकाऊ और अन्य मेटल की अपेक्षा सस्ता  होता है। प्लास्टिक का प्रमुख गुण यह है कि यह गर्म होने के बाद भी उसके  आकार में परिवर्तन नहीं होता है। पॉलीथिन और PVC थर्मोप्लास्टिक के उदाहरण हैं, जिसका प्रयोग इंडस्ट्री और घरेलू सामानों में अत्यधिक किया जाता है। दवाइयों पैकिंग से लेकर रोजमर्रा के सामानों में प्लास्टिक का प्रयोग होता है। इस प्रकार प्लास्टिक सिंथेटिक फाइबर की तरह एक पॉलीमर है। जब रासायनिक पदार्थों के छोटे-छोटे यूनिट मिलकर एक बड़ा यूनिट बनाते हैं तो उसे पॉलीमर कहते हैं। ये पॉलीमर प्राकृतिक और कृत्रिम होते हैं, प्राकृतिक पॉलीमार जैसे- कॉटन, सिल्क आदि और कृत्रिम पॉलीमार जैसे- सिंथेटिक फाइबर यानी नायलॉन,पॉलिस्टर,रेयॉन,एक्रेलिक आदि।

प्लास्टिक की खासियत यह है कि यह अपघटित नहीं होता है और ना ही बैक्टीरिया से नष्ट होते है। दूसरा प्रमुख गुण यह है कि इसके जलने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है जिसके कारण यह वातावरण में काफी विषैला धुँआ छोड़ते हैं जो प्रदूषण का कारक बनता है। प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति, वन्यजीव और यहाँ तक कि हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है:- प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जिसके कारण पर्यावरण संबंधित गंभीर परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं। प्लास्टिक का डिस्पोजल आज के समय में एक बड़ी समस्या बन गई है। जिस प्लास्टिक को इन्सान की सुविधा के लिये बनाया था, वही आज उसके के लिये भष्मासुर बन चुका है। फेंका हुआ डिस्पोज़ प्लास्टिक प्राकृतिक स्थलीय, स्वच्छ जल और समुद्री आवासों को प्रदूषित कर रहा है। हमारे द्वारा फेंका गया सॉलिड प्लास्टिक वेस्ट बरसात के पानी के माध्यम से   नदियों में जाकर मिल जाता है और समुद्रों में पहुँच जाता है। गहरे समुद्र में सूर्य का प्रकाश न पहुँचने और कम तापमान की वजह से इनका पतन आसानी से नहीं होता है। जो समुद्र के जल को प्रदूषित कर देते हैं। प्लास्टिक का कचरा समुद्री जीवों का बसेरा बनने लगते हैं। इसमें समुद्री जीव फसकर एक स्थान से दुसरे स्थान पर चले जाते है जो किसी भी देशी जाति के लिए लाभदायक नहीं होती। इसके अलावा कभी-कभी इनके बीच समुद्री जीव फँस जाते हैं और प्लास्टिक के इन कचरों को जेली फिश या भोजन समझ कर खा लिया जाता है जो उनके शरीर में जाकर जैव-संचयन का कारण बन जाते है। जैव-संचयन के तहत प्रदूषकों का जीवों के भीतर उपापचय नहीं हो पाता, जिसकी वजह से समुद्री जीवों के शरीर में इसकी मात्रा बढती जाती है। इन खतरनाक केमिकलों के कारण इनकी जनन क्षमता पर असर पड़ता है या फिर श्वसन तंत्र में विकृति आने पर इन जीवों की मृत्यु तक हो जाती है।

प्लास्टिक प्रदूषण न सिर्फ समुद्र बल्कि ताज़े जल के स्त्रोत, भूमि, जानवरों और मनुष्यों को भी बड़े स्तर पर प्रभावित करता है। प्लास्टिक मिट्टी में मिलकर खनिज, जल और पोषक तत्त्वों के अवशोषण में बाधा पहुँचाता है और इसकी उर्वरता को कम करता है। जिस जगह पर प्लास्टिक डाला जाता है जगह की जमीन और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। यह प्लास्टिक जल के साथ क्रिया कर खतरनाक रसायन बनाते है जो जमीन में रिस क्र भूमिगत जल की गुणवत्ता को ख़राब कर देते है। यही भूमिगत जल प्रदुषण का कारण बनता है। प्लास्टिक में पाए जाने वाले विषैले रसायन हमारे पीने योग्य पानी की क्वालिटी को खराब कर देते हैं।

प्लास्टिक में मौजूद विषैले रसायन से कैंसर होने की सम्भावना उत्पन्न करते हैं। साथ ही प्लास्टिक में मौजूद रसायन अन्त: स्त्रावी ग्रन्थि पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं जो मोटापा या डायबिटीज का कारण बन जाता हैं। प्लास्टिक को जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बनडाइऑक्साइड, हाइड्रोजन जैसी ज़हरीली गैसें वायुमंडल में पहुँचती हैं। ये ज़हरीली गैसें हमारे तंत्रिका तंत्र और पाचन  क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

प्लास्टिक पदार्थ भार में हल्के होने के कारण एक स्थान से दुसरे स्थान पर आसानी से पहुंच जाते है। वहां पहुंचकर पानी का रास्ता रोक लेते है जिसके कारण मच्छरों की ब्रीडिंग आसानी से हो जाती है, जो मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों का कारण बन जाते है।  साथ ही पशुओं के द्वारा इन प्लास्टिक्स को निगल लिया जाता है जो उनके मौत का कारण बन जाता है।

प्लास्टिक से उत्पन्न समस्या का समाधान:- प्लास्टिक प्रदूषण व्यापक समस्या बन चुकी है। हम प्रत्येक इतना प्लास्टिक फैकते है जिसका आकलन करना भी काफी मुश्किल है, इसकी गंभीरता को देखते हुए में प्रधानमंत्री मोदी ने भी देशवासियों से प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने की अपील की थी और साथ में 2022 तक भारत से ऑल-सिंगल यूज प्लास्टिक को हटाने की प्रतिज्ञा की थी। इस विश्वव्यापी समस्या से निपटने के लिए हमें कई प्रकार के कदम उठाने पड़ेंगे।

Single use या disposable plastic के उपयोग में कमी लाते हुए इसका प्रयोग बिल्कुल बंद करना होगा।

आसानी से नष्ट होने वाले उत्पादों का उपयोग अधिक से अधिक हो।

प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जुट से बने थैलों का इस्तेमाल करें।

जब भी आप कोई वस्तु खरीदने जाए तो फिर से कपड़े का थैला अपने साथ लेकर जाएं जिससे कि आपको प्लास्टिक की थैलियों में सामान नहीं लाना पड़े।

दुकानदार से सामान खरीदते वक्त उसे कहें कि कपड़े या कागज से बनी थैलों में ही समान दे।

खाने की वस्तुओं के लिए स्टील या फिर मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दें।

प्लास्टिक की पीईटीई (PETE) और एचडीपीई (HDPE) प्रकार के सामान चुनिए क्योंकि इस प्रकार के प्लास्टिक को रिसाइकिल करना आसान होता है।

बाहर खुले में डाले जाने वाले प्लास्टिक कचरे में तत्काल कमी लाने के लिये ज़रूरी है कि कचरे का बेहतर तरीके से निपटान और उसका प्रबंधन किया जाए।

कभी भी प्लास्टिक को स्वयं नष्ट करने की कोशिश नहीं करे क्योंकि इससे हम किसी ना किसी प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा ही देंगे इसलिए इससे अच्छा तो यह होगा कि हम किसी रिसाइकिल करने वाली कंपनी को यह प्लास्टिक दे।

प्लास्टिक के कचरे की रिसाइक्लिंग प्रक्रिया के स्थानीय स्तर पर ठोस कदम उठाया जाये और जागरूकता फैलायी जाये।

प्लास्टिक के कचरे का उपयोग निर्माणकारी कामों जैसे- सड़क निर्माण वगैरह में भी किया जा सकता है लेकिन इसके लिये ज़रूरी है कि कचरे को उसके स्रोत स्थल पर ही अलग-अलग कर दिया जाए। क्योंकि कार्बनिक पदार्थों के साथ मिलकर इसके पुनर्चक्रण की क्षमता में कमी आ जाती है।

 

जिन्दगी के लिये पाँच तत्व हैं, जल, हवा, आसमान, आग और मिट्टी। यहीं से हमें चेतना मिलती है। इन तत्वों को अक्षुण बनाये रखना हम सब की जिम्मेदारी है। प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने के लिये सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल ना करना आज की ज़रूरत हो गई है। प्राकृतिक सौन्दर्य बनाये रखने के लिए और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमें आपसी मतभेद भुलाकर प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ एक नीति बनाकर इस विश्वव्यापी समस्या दीर्घकालिक समाधान निकाल सके और आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित विरासत सौप सके।